रानी लक्ष्मीबाई

By ku.pawan singh sisodiya - अक्तूबर 02, 2020

 

रानी लक्ष्मीबाई

>> एक परिचय <<



नाम               :       मणिकर्णिका तांबे ( लक्ष्मीबाई, छबीली, मनु )
 
जन्म तिथि      :       19 नवम्बर 1828
 
जन्मस्थान      :      वाराणसी, भारत
 
मृत्यु                :      17-18th जून 1858 (उम्र 29)
 
समाधि            :     कोटा की सराय, ग्वालियर, भारत
  
माता               :      भागीरथी सापरे
 
पिता               :      मोरोपंत तांबे
 
धर्म                 :      सनातन धर्म  
 
घराना             :      नेवालकर 
 
जीवनसंगी      :      झाँसी नरेश महाराज गंगाधर राव नेवालकर
 
बच्चे                :      दामोदर राव, आनंद राव (गोद लिया)

 

जन्म

लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी में 19 नवम्बर 1828 को हुआ था। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था लेकिन प्यार से उन्हें मनु कहा जाता था। उनकी माँ का नाम भागीरथीबाई और पिता का नाम मोरोपंत तांबे था। जब लक्ष्मीबाई मात्र चार साल की थीं तभी उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। मोरोपंत एक मराठी थे और मराठा बाजीराव की सेवा में थे। क्योंकि घर में मनु की देखभाल के लिये कोई नहीं था इसलिए पिता मनु को अपने साथ पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में ले जाने लगे।  वहां मनु के स्वभाव ने सबका मन मोह लिया और लोग उसे प्यार से “छबीली” कहने लगे। शास्त्रों की शिक्षा के साथ-साथ मनु को शस्त्रों की शिक्षा भी दी गयी।


विवाह

सन् 1842 में उनका विवाह हुआ था, मणिकर्णिका का विवाह झाँसी के महाराजा, राजा गंगाधर नयालकर से हुआ था और बाद में उन्हें लक्ष्मीबाई कहा गया। उसने 1851 में एक लड़के को जन्म दिया, जिसका नाम दामोदर राव था, जिसकी चार महीने बाद मृत्यु हो गई। सन् 1853 में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ जाने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गयी। पुत्र गोद लेने के बाद 21 नवम्बर 1853 को राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी। दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया।नवंबर 1853 में महाराजा की मृत्यु के बाद, क्योंकि दामोदर राव (जन्म आनंद राव) एक दत्तक पुत्र थे, इसलिए ब्रितानी राज ने अपनी राज्य हड़प नीति के तहत बालक दामोदर राव के ख़िलाफ़ अदालत में मुक़दमा दायर कर दिया। हालांकि मुक़दमे में बहुत बहस हुई, परन्तु इसे ख़ारिज कर दिया गया। ब्रितानी अधिकारियों ने राज्य का ख़ज़ाना ज़ब्त कर लिया और उनके पति के कर्ज़ को रानी के सालाना ख़र्च में से काटने का फ़रमान जारी कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप रानी को झाँसी का क़िला छोड़कर झाँसी के रानीमहल में जाना पड़ा। पर रानी लक्ष्मीबाई ने हिम्मत नहीं हारी और उन्होनें हर हाल में झाँसी राज्य की रक्षा करने का निश्चय किया।

झाँसी का युद्ध

झाँसी 1857 के संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र बन गया जहाँ हिंसा भड़क उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करना शुरू कर दिया और एक स्वयंसेवक सेना का गठन प्रारम्भ किया। इस सेना में महिलाओं की भर्ती की गयी और उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया। साधारण जनता ने भी इस संग्राम में सहयोग दिया। झलकारी बाई जो लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थी को उसने अपनी सेना में प्रमुख स्थान दिया।
1857 के सितम्बर तथा अक्टूबर के महीनों में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने सफलतापूर्वक इसे विफल कर दिया। 1858 के जनवरी माह में ब्रितानी सेना ने झाँसी की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया। दो हफ़्तों की लड़ाई के बाद ब्रितानी सेना ने शहर पर क़ब्ज़ा कर लिया। परन्तु रानी दामोदर राव के साथ अंग्रेज़ों से बच कर भाग निकलने में सफल हो गयी। रानी झाँसी से भाग कर कालपी पहुँची और तात्या टोपे से मिली 
तात्या टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक क़िले पर क़ब्ज़ा कर लिया। बाजीराव प्रथम के वंशज अली बहादुर द्वितीय ने भी रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया और रानी लक्ष्मीबाई ने उन्हें राखी भेजी थी इसलिए वह भी इस युद्ध में उनके साथ शामिल हुए। 18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रितानी सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु हो गई। लड़ाई की रिपोर्ट में ब्रितानी जनरल ह्यूरोज़ ने टिप्पणी की कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुन्दरता, चालाकी और दृढ़ता के लिये उल्लेखनीय तो थी ही, विद्रोही नेताओं में सबसे अधिक ख़तरनाक भी थी।

रानी लक्ष्मी बाई के घोड़े

 ये माना जाता है कि झांसी की रानी मुख्यतः तीन घोड़े प्रयोग करती थीं जिनका नाम क्रमशः पवन, बादल और सारंगी था, ये भी कहा जाता है कि जब रानी बादल पर सवार होकर महल की ऊंची दीवार से कूदी तो बादल ने रानी को बचाने के लिए अपनी जान दे दी, उसके बाद रानी लक्ष्मी बाई पवन का प्रयोग करने लगी थीं | 


वीरगती

झांसी पहुंचने पर लेंग को 50 घुड़सवार एक पालकी में बिठा कर रानी महल लाये जहा के एक बगीचे में रानी ने शामियाना लगवाया था। रानी लक्ष्मी बाई शामियाना के एक कोने में एक पर्दे के पीछे बैठी हुई थी। तभी अचानक रानी के दत्तक पुत्र दामोदर ने वो पर्दा हटा दिया लेंग की नजर रानी के ऊपर गई। बाद में रेनेर जराश ने एक किताब लिखी "द रानी ऑफ़ झांसी रिबेल अगेंस्ट विल" किताब में रेनेर जराश ने जॉन लेंग को कहते हुए बताया रानी मध्यम कद की तगड़ी महिला थी।
चलिए फ़िलहाल चलते है युद्ध के मैदान की तरफ जहा पर कैप्टन रॉड्रिक ब्रिग्स ने तय किया की खुद आगे जाकर रानी पर वार करने की कोशिस करेंगे। लेकिन जब जब वो ऐसे करना चाहते थे रानी के घुड़सवार उन्हें घेर कर उनपर हमला करते थे। उनकी पूरी कोशिस थी की उनका ध्यान भंग कर दे। कुछ लोगो को घायल करने और मारने के बाद रॉड्रिक ने अपने घोड़े की दौड़ लगाई और रानी की तरफ बढ़ चले। उसी समय अचानक रॉड्रिक के पीछे से जनरल रोज की अत्यंत निपुण ऊट की टुकड़ी ने ली उस टुकड़ी को रोज में रिज़र्व में रखा था। इसका इस्तेमाल वो जवाबी हमला करने वाले थे। इस टुकड़ी के अचानक लड़ाई में कूदने से ब्रिटिश में मन में फिर से जान आ गई। रानी फौरन भाग गई। उनके सैनिक मेदान से भागे नहीं लेकिन धीरे धीरे उनकी संख्या कम होने लगी।
रानी और उनके सेनिको ने एक मील पार किया था की कैप्टन ब्रिग्स के घुड़सवार ठीक उनके पीछे आ पहुंचे, जगह थी कोटा की सराये । लड़ाई नए सिरे से शुरू हुई। रानी के एक सैनिक के मुकाबले औसतन ब्रिटिश के दो सैनिक जंग लड़ रहे थे। अचानक रानी को अपने बाहे हिस्से में हल्का सा दर्द महसूस हुआ। जो किसी सांप के काटने पर दर्द महसूस होता है बिलकुल वैसा ही। एक अंग्रेज सैनिक ने जिसे वो देख नही पाई थी पीछे से चाकू घोब दी थी वो तेजी से मुड़ी और उस पर जोर से हमला किया। रानी को लगी चोट जायदा गहरी नहीं थी लेकिन तेजी से खून बह रहा था। अचानक दौड़ते दौड़ते उनेक सामने एक छोटा सा झरना आ गया उन्होंने सोचा की वो पार कर लेगी तब उनपर कोई वार नही कर पायेगा। उन्होंने तेजी से छलांग लगाई और वो घोडा दौड़ने की बजाये वही रुक गया। तब उन्हें लगा की उनके कमर में किसी ने बहुत तेजी से वार किया है उनको राइफल की एक गोली लग चुकी थी। रानी के बाये हाथ की तलवार निचे गिर गई। उन्होंने उस हाथ से अपने कमर से निकलने वाले खून को दबा के रखा और रोकने की कोशिस की। तब तक एक अंग्रेज रानी के घोड़े के बगल में आ पंहुचा था। उसने रानी पर वार करने के लिए अपनी तलवार ऊपर उठाई और रानी ने भी उसका वार रोकने के लिए दाहिने हाथ से तलवार ऊपर की। उस अंग्रेज की तलवार उनके सिर पर इतनी तेजी से लगी की उनका माथा फट गया और उससे निकलने वाले खून से लगभग अंधी हो गई।
तब भी रानी ने पूरी ताकत लगा कर उस अंग्रेज सैनिक पर जवाबी वार किया। लेकिन वो सिर्फ उसके कंधे को ही घायल कर पाई। रानी घोड़े से निचे गिर गई। तभी उनके एक सैनिक ने घोड़े से कूद कर अपने हाथो में उठा लिया और पास के एक मंदिर में ले आया। रानी तब तक जीवित थी। मंदिर के पुजारी ने उनके सूखे हुए होठो को एक बोतल में रखे गंगाजल से तर किया। रानी बहुत बुरी तरह से घायल हो चुकी थी। और बहुत बुरी हालत थी। धीरे धीरे वो अपने होश खो रही थी। तभी रोड्रिक ने जोर से चिल्ला कर कहा वो लोग मंदिर के उधर है उन पर हमला करो। रानी अभी भी जिन्दा है। उधर पुजारियों ने रानी के लिए अंतिम प्रार्थना शुरू कर दी थी। रानी ने बड़ी मुश्किल से एक आँख खोली उन्हें सब कुछ धुंदला दिखाई दे रहा था।
उनके मुँह से रुक रुक कर शब्द निकल रहे थे। दामोदर ,दामोदर में उसे तुम्हारे देख रेख में छोड़ती हूँ। उसे सामने ले जाओ। बहुत मुश्किल से उन्होंने अपने गले से मोतियों का हार निकालने की कोशिश की लेकिन वो ऐसा नहीं कर पाई और फिर बेहोश हो गई मंदिर के पुजारी में उनके गले से हार उतार कर अंगरक्षक के हाथ में रख दिया इसे निचे रखो ये दामोदर के लिए है। रानी की सांसे तेजी से चल रही थी। उनकी चोट से खून निकल कर उनके फेफड़ो में जा रहा था। धीरे धीरे वो डूबने लगी थी। अचानक जैसे उनको फिर से जान आ गई वो बोली अंग्रेजो को मेरा शरीर नहीं मिलना चाहिए। ये कहते ही एक और झटका आया और सब कुछ शांत हो गया।
झांसी की रानी लक्ष्मी बाई ने अपने प्राण त्याग दिए थे।वहाँ मौजूद रानी के अंगरक्षकों ने आनन-फ़ानन में कुछ लकड़ियाँ जमा की और उन पर रानी के पार्थिव शरीर को रख आग लगा दी थी.
उनके चारों तरफ़ रायफ़लों की गोलियों की आवाज़ बढ़ती चली जा रही थी. मंदिर की दीवार के बाहर अब तक सैकड़ों ब्रिटिश सैनिक पहुंच गए थे.
मंदिर के अंदर से सिर्फ़ तीन रायफ़लें अंग्रेज़ों पर गोलियाँ बरसा रही थीं. पहले एक रायफ़ल शांत हुई... फिर दूसरी और फिर तीसरी रायफ़ल भी शांत हो गई.
जब अंग्रेज़ मंदिर के अंदर घुसे तो वहाँ से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी. सब कुछ शांत था. सबसे पहले रॉड्रिक ब्रिग्स अंदर घुसे.वहाँ रानी के सैनिकों और पुजारियों के कई दर्जन रक्तरंजित शव पड़े हुए थे. एक भी आदमी जीवित नहीं बचा था. उन्हें सिर्फ़ एक शव की तलाश थी.
तभी उनकी नज़र एक चिता पर पड़ी जिसकीं लपटें अब धीमी पड़ रही थीं. उन्होंने अपने बूट से उसे बुझाने की कोशिश की.तभी उसे मानव शरीर के जले हुए अवशेष दिखाई दिए. रानी की हड्डियाँ क़रीब-क़रीब राख बन चुकी थीं.


कैप्टन क्लेमेंट वॉकर हेनीज का वर्णन

इस लड़ाई में लड़ रहे कैप्टन क्लेमेंट वॉकर हेनीज ने बाद में रानी के अंतिम क्षणों का वर्णन करते हुए लिखा, "हमारा विरोध ख़त्म हो चुका था. सिर्फ़ कुछ सैनिकों से घिरी और हथियारों से लैस एक महिला अपने सैनिकों में कुछ जान फूंकने की कोशिश कर रही थी. बार-बार वो इशारों और तेज़ आवाज़ से हार रहे सैनिकों का मनोबल बढ़ाने का प्रयास करती थी, लेकिन उसका कुछ ख़ास असर नहीं पड़ रहा था. कुछ ही मिनटों में हमने उस महिला पर भी काबू पा लिया. हमारे एक सैनिक की कटार का तेज़ वार उसके सिर पर पड़ा और सब कुछ समाप्त हो गया. बाद में पता चला कि वो महिला और कोई नहीं स्वयं झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई थी."


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