सिसोदिया (राजपूत)

By ku.pawan singh sisodiya - अक्तूबर 09, 2020

सिसोदिया (राजपूत)

mewar ka rajchinh
मेवाड़ का राज चिन्ह 

इतिहास

सिसोदिया एक ऐसा वंश जिसका नाम लेते ही हमारे सामने महाराणा प्रताप का चित्र उभर कर आता है, पर इस वंश ने हमारे धरती को कई अनमोल राजा और देशभक्त दिए है और हमे उन सब पैर गर्व होना चाहिए 

सिसोदिया वंश गुहिल वंश से बना था अब आगे चलिए बताते हैं कैसे गोहिल वंश की स्थापना 566 ईसवी में हुई थी बाद में वही गहलोत वंश बना गहलोत और इसके बाद में यह सिसोदिया राजवंश के नाम से जाना है

गहलौतों की शाखा सिसोदिया है । यह पहले लाहौर में रहते थे। वहां से बाद में बल्लभीपुर गुजरात में आये । वहीं पर बहुत दिनों तक राज्य करते रहे । वहां का अन्तिम राजा सलावत या शिलादित्य था।
बल्लभीपुर नगर को बाद में मुसलमान लुटेरों ने तहस नहस कर दिया था। उसी के वंशज सिलावट कहलाये। राजा शिलादित्य को रानी पुष्पावती ( पिता चन्द्रावत परमार वंश से ) जो गर्भ से थी.अम्बिकादेवी के मन्दिर में पूजन करने गई थी। जब रास्ते में उसने सुना कि राज्य नष्ट हो गया है और शिलादित्य वीरगति को प्राप्त कर चुके हैं तो वह भागकर मलियागिरी की खोह में चली गई। उसके वहाँ पुत्र उत्पन्न हुआ। रानी ने अपनी एक सखी महंत की लड़की कलावती को इस लड़के को सौंपकर कहा कि मैं तो सती होती हु,  तुम इस लड़के का पालन-पोषण करना और इसकी शादी किसी राजपूत लड़की से कराना । इसके बाद रानी सती हो गई गोह या खोह में जन्म लेने के कारण इस लड़के का नाम गुहा रखा जिससे गहलोत वंश प्रसिद्ध हुआ।

--जेम्स टाड़ राजस्थान व क्षत्रिय दर्पण से।

इसी मे गहलौत शब्द प्रसिद्ध हुआ है, जिसका कि विस्तार आगे जाकर सिसोदिया हुआ है ।

सन 712 ई. में अरबों ने सिंध पर आधिपत्य जमा कर भारत विजय का मार्ग प्रशस्त किया। इस काल में न तो कोई केन्द्रीय सत्ता थी और न कोई सबल शासक था जो अरबों की इस चुनौती का सामना करता। फ़लतः अरबों ने आक्रमणों की बाढ ला दी और सन 725 ई. में जैसलमेर, मारवाड़, मांडलगढ और भडौच आदि इलाकों पर अपना आधिपत्य जमा लिया। ऐसे लगने लगा कि शीघ्र ही मध्य पूर्व की भांति भारत में भी इस्लाम की तूती बोलने लगेगी। ऐसे समय में दो शक्तियों का प्रादुर्भाव हुआ। एक ओर जहां नागभाट ने जैसलमेर, मारवाड, मांडलगढ से अरबों को खदेड़कर जालौर में प्रतिहार राज्य की नींव डाली, वहां दूसरी ओर बप्पा रायडे ने चित्तौड़ के प्रसिद्ध दुर्ग पर अधिकार कर सन 734 ई. में मेवाड़ में गुहिल वंश अथवा गहलौत वंश का वर्चश्व स्थापित किया और इस प्रकार अरबों के भारत विजय के मनसूबों पर पानी फ़ेर दिया।

मेवाड़ का गुहिल वंश संसार के प्राचीनतम राज वंशों में माना जाता है। मेवाड़ राज्य की केन्द्रीय सत्ता का उद्भव स्थल सौराष्ट्र रहा है। जिसकी राजधानी बल्लभीपुर थी और जिसके शासक सूर्यवंशी क्षत्रिय कहलाते थे। यही सत्ता विस्थापन के बाद जब ईडर में स्थापित हुई तो गहलौत मान से प्रचलित हुई। ईडर से मेवाड़ स्थापित होने पर रावल गहलौत हो गई। कालान्तर में इसकी एक शाखा सिसोदे की जागीर की स्थापना करके सिसोदिया हो गई। चूँकि यह केन्द्रीय रावल गहलौत शाखा कनिष्ठ थी। इसलिये इसे राणा की उपाधि मिली। उन दिनों राजपूताना में यह परम्परा थी कि लहुरी शाखा को राणा उपाधि से सम्बोधित किया जाता था। कुछ पीढियों बाद एक युद्ध में रावल शाखा का अन्त हो गया और मेवाड़ की केन्द्रीय सत्ता पर सिसोदिया राणा का आधिपत्य हो गया। केन्द्र और उपकेन्द्र पहचान के लिए केन्द्रीय सत्ता के राणा महाराणा हो गये। गहलौत वंश का इतिहास ही सिसोदिया वंश का इतिहास है।

ban mata
बाणमाता जी

मान्यताएँ

मान्यता है कि सिसोदिया क्षत्रिय भगवान राम के कनिष्ठ पुत्र लव के वंशज हैं। सूर्यवंश के आदि पुरुष की 65 वीं पीढ़ी में भगवान राम हुए 195 वीं पीढ़ी में वृहदंतक हुये। 125 वीं पीढ़ी में सुमित्र हुये। 155 वीं पीढ़ी अर्थात सुमित्र की 30 वीं पीढ़ी में गुहिल हुए जो गहलोत वंश की संस्थापक पुरुष कहलाये। गुहिल से कुछ पीढ़ी पहले कनकसेन हुए जिन्होंने सौराष्ट्र में सूर्यवंश के राज्य की स्थापना की। गुहिल का समय 540 ई. था। बटवारे में लव को श्री राम द्वारा उत्तरी पश्चिमी क्षेत्र मिला जिसकी राजधानी लवकोट थी। जो वर्तमान में लाहौर है। ऐसा कहा जाता है कि कनकसेन लवकोट से ही द्वारका आये। हालांकि वो विश्वस्त प्रमाण नहीं है। टॉड मानते है कि 145 ई. में कनकसेन द्वारका आये तथा वहां अपने राज्य की परमार शासक को पराजित कर स्थापना की जिसे आज सौराष्ट्र क्षेत्र कहा जाता है। कनकसेन की चौथी पीढ़ी में पराक्रमी शासक सौराष्ट्र के विजय सेन हुए जिन्होंने विजय नगर बसाया। विजय सेन ने विदर्भ की स्थापना की थी। जिसे आज सिहोर कहते हैं। तथा राजधानी बदलकर बल्लभीपुर (वर्तमान भावनगर) बनाया। इस वंश के शासकों की सूची टॉड देते हुए कनकसेन, महामदन सेन, सदन्त सेन, विजय सेन, पद्मादित्य, सेवादित्य, हरादित्य, सूर्यादित्य, सोमादित्य और शिला दित्य बताया। 524 ई. में बल्लभी का अन्तिम शासक शिलादित्य थे। हालांकि कुछ इतिहासकार 766 ई. के बाद शिलादित्य के शासन का पतन मानते हैं। यह पतन पार्थियनों के आक्रमण से हुआ। शिलादित्य की राजधानी पुस्पावती के कोख से जन्मा पुत्र गुहादित्य की सेविका ब्रहामणी कमलावती ने लालन पालन किया। क्योंकि रानी उनके जन्म के साथ ही सती हो गई। गुहादित्य बचपन से ही होनहार था और ईडर के भील मंडालिका की हत्या करके उसके सिहांसन पर बैठ गया तथा उसके नाम से गुहिल, गिहील या गहलौत वंश चल पडा। कर्नल टॉड के अनुसार गुहादित्य की आठ पीढ़ियों ने ईडर पर शासन किया ये निम्न हैं - गुहादित्य, नागादित्य, भागादित्य, दैवादित्य, आसादित्य, कालभोज, गुहादित्य, नागादित्य।

sisodiya rajput ka dhwaj
सिसोदिया राजपूतो का ध्वज 

सिसोदिया और भील


सिसोदिया मेवाड़ के शासक थे , सिसोदिया और भील दोनों जातियों के संबंध अच्छे रहे है , जब भी कोई राजा गद्धी पर बैठता तो उसका राजतिलक भील प्रमुख द्वारा किया जाता था , दर्शाल भील राजस्थान के प्राचीन शासकों में से एक थे , दर्शल इस प्रथा के पीछे राजपूत और भील में एकता बनाए रखना था । मेवाड़ चिन्ह में एक तरफ महाराणा प्रताप और एक तरफ राणा पूंजा यानी राजपूत और भील का प्रतीक चिन्ह अपनाया गया।

सिसोदिया वर्णसंकर के अनुसार, जब दिल्ली सुल्तान अलाउद्दीन खलजी ने 1303 में चित्तौड़गढ़ पर हमला किया, तो सिसोदिया पुरुषों ने शक (मौत से लड़ने) का प्रदर्शन किया, जबकि उनकी महिलाओं ने शत्रु बंदी बनने से पहले जौहर (आत्मदाह) किया।

सिसोदिया राजवंश की कुलदेवी


"श्री बाण माता जी" "श्री ब्रह्माणी माताजी" "श्री बायण माताजी" "श्री बाणेश्वरी माताजी" मेवाड के सूर्यवंशी गहलोत और सिसोदिया राजवंश की कुलदेवी है।

" बाण तू ही ब्रह्माणी , बायण सु विख्यात ।
सुर संत सुमरे सदा , सिसोदिया कुल मात ।।"


गुहिलोत(सिसोदिया) वंश के गोत्र प्रवरादि

  • वंश – सूर्यवंशी,गुहिलवंश,सिसोदिया
  •  गोत्र – वैजवापायन
  • प्रवर – कच्छ, भुज, मेंष
  • वेद – यजुर्वेद
  • शाखा – वाजसनेयी
  • गुरु – द्लोचन(वशिष्ठ)
  • ऋषि – हरित
  • कुलदेवी – बाण माता
  • कुल देवता – श्री सूर्य नारायण
  • इष्ट देव – श्री एकलिंगजी
  • वॄक्ष – खेजड़ी
  • नदी – सरयू
  • झंडा – सूर्य युक्त
  • पुरोहित – पालीवाल
  • भाट – बागड़ेचा
  • चारण – सोदा बारहठ
  • ढोल – मेगजीत
  • तलवार – अश्वपाल
  • बंदूक – सिंघल
  • कटार – दल भंजन
  • नगारा – बेरीसाल
  • पक्षी – नील कंठ
  • निशान – पंच रंगा
  • निर्वाण – रणजीत
  • घोड़ा – श्याम कर्ण
  • तालाब – भोडाला
  • विरद – चुण्डावत, सारंगदेवोत
  • घाट – सोरम
  • ठिकाना – भिंडर
  • चिन्ह – सूर्य
  • शाखाए – 24


नोट-इनकी २४ शाखायें तथा अनेक प्रशाखा हैं। जिनका विवरण नहीं लिखा गया है। शाखा प्रसिद्ध पुरुष या स्थान के नाम से होती हैं । शाखा तथा प्रशाखाओं के गोत्र कहीं कहीं इस प्रकार हैं । जेसे वेजपायण प्रवर ३, कक्ष, भुज,मेघ और कहीं-कहीं कश्यप है ।



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8 Comments

  1. jo bhi aap sabhi ko janna ho hume e mail ya instragram ki id pe likh ke beje

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  2. १२७१विक्रम संवत में सिंध व मारवाड़ में सिसोदिया के ठिकानों की जानकारी हो तो बताए।और १२७१ विक्रम में सिंध मारवाड़ से विस्तपित राजपूत की जानकारी हो तो बताए।
    बहादुर सिंह सिसौदिया
    ठिकाना आर्या इछावर सीहोर mp

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    1. मेरे मोबाइल नंबर बहादुर सिंह सिसौदिया
      9806137611

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