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Sambhaji

By ku.pawan singh sisodiya - सितंबर 25, 2020

संभाजी राजे भोसले

>> एक परिचय <<

संभाजी राजे भोसले
 
नाम                 :     संभाजी राजे भोसले
 
जन्म तिथि       :     14 मई 1657
 
जन्मस्थान       :     पुरंदर दुर्ग, पुणे
 
राज्याभिषेक    :     20, जुलाई 1680, पन्हाला
 
शासनावधि     :     20 जुलाई 1681 से 11 मार्च 1689
 

 मृत्यु                :      11 मार्च 1689
 
  
मृत्यु स्थान       :      तुलापुर, पुणे  
 
मृत्यु कारण      :      हत्या (औरंगजेब द्वारा)
 
शिक्षक             :    -----------
 
माता                :     सईबाई
 
 
पिता                 :     छत्रपति शिवाजी 

घराना            :    भोंसले 

धर्म                   :      सनातन धर्म  

पत्नी                  :      येसूबाई 

बच्चे                   :      भवानी बाई 

प्रसिद्धी कारण   :      मराठा साम्राज्य के दूसरे शासक

 जन्म

संभाजी भोसले (या छत्रपति संभाजी महाराजमराठा साम्राज्य के दूसरे शासक और शिवाजी के पुत्र थे.बचपन में उन्हें छवा कहकर बुलाया जाता था जिसका मतलब होता है शेर का बच्चा.संभाजी भोसले का जन्म 14 मई 1657 को पुणे में हुआ था. संभाजी का जन्म शिवाजी की पहली पत्नी साईबाई से हुआ था. जन्म के दो वर्ष बाद ही उनकी माताजी सईबाई का निधन हो गया. उनका सारा पालन पोषण शिवाजी की माँ यानि भोसले जी की दादी जिजाबाई ने किया. वह संस्कृत के ज्ञाता, कला प्रेमी और वीर योद्धा भी थे. उन्होंने मात्र 14 साल की उम्र में बुद्धभुषण, सातशातक, नायिकाभेद यह तीन ग्रन्थ लिखे जो की संस्कृत में थे.


 राज्याभिषेक

6 जून, 1674 को शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के समय, उन्हें मराठा साम्राज्य का राजकुमार घोषित कर दिया गया. एक राजकुमार के रूप में संभाजी ने अपनी बहादुरी और सैन्य प्रतिभा को साबित किया. उन्होंने 16 साल की उम्र में रामनगर में अपना पहला युद्ध जीता. 

संभाजी महाराज के राज्याभिषेक के दरम्यान भी भहुत राजनीती चली जा रही थी। सोयराबाई और उनके समर्थकों ने संभाजी को पन्हाला के किले में गिरफ़्तार करने की साजिश रची, जहाँ वे शिवाजी की मृत्यु के समय ठहरे थे। वे राजाराम का मुकुट चाहते थे और संभाजी को मराठा सम्राट नहीं बनने देते थे। हालाँकि, सरनोबत (मराठा सेनाओं के सर्वोच्च कमांडर) और सोयराबाई के भाई, हंबिराराव मोहिते ने संभाजी का समर्थन किया था क्योंकि वह सिंहासन के लिए योग्य उत्तराधिकारी थे। शिवाजी की मृत्यु के समय, महाराष्ट्र पर औरंगज़ेब की सेना के आसन्न हमले की खबर थी और इस महत्वपूर्ण मोड़ पर, संभाजी जैसे एक मजबूत नेता को समय की आवश्यकता थी। इसलिए हम्मीरराव ने अपनी बहन का समर्थन नहीं किया और संभाजी के बजाय पक्ष लिया। 

संभाजी को जब इस षड़यंत्र का पता चला तो उन्होंने सोयराबाई के भाई, हम्बीराव मोहिते से मदद मांगी. हम्बीराव ने, सोयराबाई का होने के बावजूद संभाजी का साथ दिया.

संभाजी ने 20,000 सिपाहियों की फौज लेकर रायगढ़ के किले पर चढ़ाई की. रायगढ़ को बड़ी आसानी से जीतने के बाद उन्होंने, अपनी सौतली मां, सोयराबाई को कैद कर लिया. संभाजी के खिलाफ़ षड़यंत्र करने के अलावा, सोयराबाई पर शिवाजी को ज़हर देने का भी आरोप था. कुछ दस्तावेज़ों के अनुसार, संभाजी ने सोयराबाई को मरवाया था, वहीं कुछ दस्तावेज़ों के अनुसार सोयराबाई शिवाजी की मौत से हृदयघात से हुई थी. युरोपियन दस्तावेज़ों के अनुसार, संभाजी ने ख़ुद सोयराबाई का अंतिम संस्कार किया था. सच तो इस देश की मिट्टी ही जानती है. 1681 में संभाजी ने खुद को छत्रपति घोषित कर दिया. 

विश्वासघात 

औरंगज़ेब के बेटे, शहज़ादे अक़बर ने अपने पिता के खिलाफ़ विद्रोह कर दिया था. अक़बर ने संभाजी से सहायता मांगी थी और उन्होंने अक़बर को अपने यहां पनाह दी थी. संभाजी ने मुग़लों पर कई हमले किए. कुछ में उनको जीत मिली, तो कुछ में हार. शिवाजी के बेहद करीबी थे उज्जैन के कवि कलश. कवि कलश ने संभाजी को गर्मियां बिताने के लिए ने संगमेश्वर में एक किले का निर्माण करवाने को कहा. संभाजी संगमेश्वर में थे, रायगढ़ किले की सुरक्षा से दूर. मुग़ल सेनापति मुकर्रब ख़ान को इसकी सूचना मिली और उसने संभाजी को बंदी बनाने की योजना बनाई. मुकर्रब कि सहायता, संभाजी के ही एक रिश्तेदार ने की. संभाजी और कवि कलश को बंदी बना लिया गया और उन्हें औरंगज़ेब के पास ले जाया गया.


मुग़ल बादशाह कि शर्तें 

  • संभाजी अपनी सारी सेना, सारे किलों और मराठाओं के ख़ज़ाने को मुग़लों के हवाले कर दे.
  • संभाजी सारे मुग़ल गद्दारों के नाम बताए.
  • संभाजी मुसलमान बन जाए.

वीर मराठा छत्रपति ने औरंगज़ेब कि किसी भी शर्त को मानने से इंकार कर दिया. अपनी बेइज़्जती का बदला संभाजी ने ग़ज़ब तरीके से लिया. कुछ दस्तावेज़ों के मुताबिक, संभाजी सारी शर्तें एक शर्त पर मानने को तैयार हुए, वो ये कि औरंगज़ेब अपनी बेटी का विवाह संभाजी से कर दे.  

औरंगज़ेब ने अपना आपा खो दिया और संभाजी को मारने के आदेश दे दिए. 

संभाजी  कि हत्या

1683 में उसने पुर्तगालियों को पराजित किया। इसी समय वह किसी राजकीय कारण से संगमेश्वर में रहे थे। जिस दिन वो रायगड के लिए प्रस्थान करने वाले थे उसी दिन कुछ ग्रामस्थो ने अपनी समस्या उन्हें अर्जित करनी चाही। जिसके चलते छत्रपति संभाजी महाराज ने अपने साथ केवल 200 सैनिक रख के बाकि सेना को रायगड भेज दिया। 
उसी वक्त उनके एक फितूर गणोजी शिर्के जो कि उनकी पत्नी येसूबाई के भाई थे जिनको उन्होंने वतनदारी देने से इन्कार किया था, मुग़ल सरदार मुकरब खान के साथ गुप्त रास्ते से 5000 के फ़ौज के साथ वहां पहुंचे। यह वह रास्ता था जो सिर्फ मराठों को पता था। इसलिए संभाजी महाराज को कभी नहीं लगा था के शत्रु इस और से आ सकेगा। उन्होंने लड़ने का प्रयास किया किन्तु इतनी बड़ी फ़ौज के सामने 200 सैनिकों का प्रतिकार काम कर न पाया और अपने मित्र तथा एकमात्र सलाहकार कविकलश के साथ वह बंदी बना लिए गए 

(1 फरबरी, 1689)।

औरंगज़ेब ने एक बार फिर संभाजी से इस्माल कुबूलने को कहा. संभाजी ने हिन्दू धर्म की महानता कि व्याख्या करते हुए औरंगज़ेब की बात मानने से मना कर दिया. औरंगज़ेब ने संभाजी के घावों पर नमक लगवाने की आदेश दिया. 

इस्लाम धर्म न कबूलने पर उन्हें औरंगजेब के कैंप पर ले जाया गया जोकि अकलुज में था। उसके बाद वहां उन दोनों को तहखाने में भी डालने का आदेश दिया गया था। उसके बाद उन्हें अनेक प्रकार की यातनाएं दी गई ताकि वे इस्लाम को स्वीकार कर ले। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।

इतने में भी संभाजी हिन्दू धर्म का गुणगान करते रहे. बादशाह ने संभाजी की जीभ काटकर उनके पैरों तले रखने के आदेश दिए और फिर उनकी जीभ एक कुत्ते के आगे फेंक दी गई. औरंगज़ेब ने संभाजी की आंखें निकलवाने के भी तात्कालिक आदेश दे डाले.

औरंगज़ेब की हैवानियत यहीं पर नहीं रुकी. संभाजी को सबसे दर्दनाक मौत देने की पूरी योजना बनाई गयी थी. संभाजी को कई यातनाएं दी गईं. एक-एक कर, धीरे-धीरे उनके हाथ और पैर काटे गए. फिर उन्हें उसी अवस्था में छोड़ दिया गया. कुछ दिन बाद भी संभाजी में जान बाकी थी, तब संभाजी का सिर काटकर, किले पर टांग दिया गया. 

11 मार्च 1689 हिन्दू नववर्ष दिन को दोनों के शरीर के टुकडे कर के हत्या कर दी 

 हत्या पूर्व औरंगजेब ने छत्रपति संभाजी महाराज से कहा के मेरे 4 पुत्रों में से एक भी तुम्हारे जैसा होता तो सारा हिन्दुस्थान कब का मुग़ल सल्तनत में समाया होता। 


संभाजी महाराज की मृत्यू के तुरंत बाद 

कुछ मराठाओं ने संभाजी के शरीर को सिलकर, उनका अंतिम संस्कार भीमा नदी के तट पर किया. संभाजी के मित्र, कवि कलश को उन्हीं के जैसी दर्दनाक मौत दी गई. वीर शिवाजी का एक ही सपना था, स्वराज की स्थापना. ये सपना पूरा तो नहीं हो सका, पर संभाजी की शहादत के बाद सारे मराठी एक हो गए और साथ मिल कर मुग़लों के खिलाफ लड़ते रहे.

कुछ महत्वपूर्ण

  • संभाजी की पत्नी का नाम जीवाजीबाई था लेकिन मराठा रिवाज के अनुसार उन्होंने अपना नाम यसुबाई लिया.
  • संभाजी ने पहली बुलेटप्रूफ जैकेट बनाई थी.
  • संभाजी महाराज ने हल्की तोपें भी बनाईं थी.

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