मेजर दलपत सिंह शेखावत
>> एक परिचय <<
पूरा नाम :- मेजर दलपत सिंह शेखावत
उपाधि :- मिलिट्री क्रॉस, हीरो ऑफ हैफासम्मानित :- IOM (इंडियन आर्डर ऑफ मेरिट), OBE (ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश इंपायर)जन्म :- 26 जनवरी 1892जन्मस्थान :- देवली हाउस जोधपुर, भारतनिधन :- 23 सितम्बर 1918मृत्यु स्थल :- हाइफा युद्ध मेंमाता :- ----------------पिता :- विश्व प्रसिद्ध पोलो खिलाड़ी कर्नल हरिसिंह शेखावतवंश :- शेखावतघराना :- रावणा राजपूतधर्म :- सनातन धर्म
जन्म
मेजर दलपत सिंह शेखावत का जन्म 26 जनवरी 1892 ई. में जोधपुर के देवली हाउस रातानाड़ा में रावणा राजपूत परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा इंग्लैंड के इस्टबोर्न कॉलेज में हुई। वहां इन्होंने टयूडर परिवार के संरक्षण में ग्यारह वर्ष तक शिक्षा ग्रहण की। प्रो. राठौड़ ने बताया कि मेजर दलपत सिंह को 1912 ई. में किंग्स कमिश्न द्वारा जोधपुर लांसर्स में सम्मानित किया गया। मेजर दलपतसिंह देवली एवं उनके पिता कर्नल ठाकुर हरिसिंह देवली का यहां निवास स्थान रहा था। कर्नल हरिसिंह पोलो खेल के प्रसिद्ध खिलाड़ी थे।
हाइफा का युद्ध
- हाइफा का युद्ध 23 सितंबर 1918 को लड़ा गया था। यह युद्ध प्रथम विश्व युद्ध के दौरान शांति के लिए सिनाई और फिलस्तीन के बीच चलाए जा रहे अभियान के अंतिम महीनों में लड़ा गया था।
- प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की की सेना ने हाइफा पर कब्जा कर लिया. वे वहां युद्धियों पर 3 अत्याचार कर रही थी और तुर्की सेना का मोर्चा बहुत मजबूत था तब उस पर विजय हासिल करने के लिए भारतीय सेना का दायित्व मेजर दलपत सिंह शेखावत को दिया गया, जिन्होंने सच्चे सेनापति की तरह बहादुरी का असाधारण परिचय दिया. और मात्र एक घंटे में हाइफा शहर जो इजराइल का प्रमुख शहर था
- इस दिन भारतीय शूरवीराें ने जर्मनी और तुर्कों की सेनाओं को हाइफा से खदेड़ बाहर कर दिया। प्रथम विश्वयुद्ध के समय भारत की 3 रियासतों मैसूर, जोधपुर और हैदराबाद के सैनिकों को अंग्रेजों की ओर से युद्ध के लिए तुर्की भेजा गया।
- हैदराबाद रियासत के सैनिक मुस्लिम थे, इसलिए अंग्रेजों ने उन्हें तुर्की के खलीफा के विरुद्ध युद्ध में हिस्सा लेने से रोक दिया। केवल जोधपुर व मैसूर के सैनिकों को युद्ध लड़ने का आदेश दिया।
- उस वक्त जोधपुर रियासत के घुड़सवारों के पास हथियार के नाम पर मात्र बंदूकें, लेंस (एक प्रकार का भाला) और तलवारें थी । वहीं, जर्मन सेना तोपों तथा मशीनगनों से लैस थी।
- लेकिन राजस्थान के रणबांकुरों के हौसले के आगे दुश्मन पस्त हो गया। इस दौरान मेजर दलपत सिंह शहीद हो गए।
- युद्ध में 1,350 जर्मन और तुर्क कैदियों पर भारतीय सैनिकों ने कब्जा कर लिया। युद्ध में मेजर दलपत सिंह के समेत 6 घुड़सवार शहीद हुए, जबकि टुकड़ी के 60 घोड़े भी मारे गए।
- इस युद्ध ने इजरायल राष्ट्र के निर्माण के रास्ते खोल दिए। 14 मई 1948 को यहूदियों का नया देश इजरायल बना।
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